UPSC Lateral Entry क्या है?
हाल ही में केंद्र सरकार ने UPSC Lateral Entry के मुद्दे पर अपना रुख बदलते हुए तीसरी बार महत्वपूर्ण कदम उठाया है। यह घटनाक्रम सरकार के लिए न केवल असहज स्थिति पैदा कर रहा है, बल्कि इसके पीछे के कारणों को लेकर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। मात्र 12 दिनों के भीतर, सरकार को तीसरी बार अपने फैसले पर पुनर्विचार करना पड़ा है, जिससे यह साफ होता है कि UPSC Lateral Entry के मामले में सरकार के लिए स्थिति कितनी जटिल हो गई है।
UPSC Lateral Entry का अर्थ है, सरकारी सेवाओं में ऐसे व्यक्तियों की भर्ती जो बाहरी होते हैं, अर्थात् वे सामान्य प्रतियोगी परीक्षाओं के जरिए नहीं बल्कि सीधे अपने अनुभव और विशेषज्ञता के आधार पर नियुक्त होते हैं। यह प्रक्रिया सरकार को उन व्यक्तियों को शामिल करने की अनुमति देती है, जिनके पास विशिष्ट कौशल और विशेषज्ञता होती है, और जो नौकरशाही में नई ऊर्जा और दृष्टिकोण ला सकते हैं।
केंद्र सरकार का यू-टर्न
पिछले कुछ वर्षों में, सरकार ने UPSC Lateral Entry के माध्यम से कई विशेषज्ञों को नौकरशाही में शामिल किया है। हालांकि, हाल ही में सरकार ने इस पर पुनर्विचार करते हुए कुछ पदों को रद्द कर दिया है। 12 दिनों के भीतर यह तीसरी बार है जब सरकार ने UPSC Lateral Entry के मामले में यू-टर्न लिया है। यह यू-टर्न इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे सरकार की निर्णय प्रक्रिया और इस मुद्दे पर उसकी स्पष्टता पर सवाल खड़े हो रहे हैं।
घुटने टेकने के कारण
सरकार को बार-बार अपने फैसलों पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर क्यों होना पड़ा? इसके कई संभावित कारण हो सकते हैं:
विरोध और आलोचना: विपक्षी दलों और कुछ प्रशासनिक अधिकारियों ने UPSC Lateral Entry की प्रक्रिया पर सवाल उठाए हैं। उनका तर्क है कि यह पारदर्शिता और मेरिट आधारित चयन प्रक्रिया के खिलाफ है। इस आलोचना के कारण सरकार को अपने निर्णय पर पुनर्विचार करना पड़ा।
नौकरशाही में असंतोष: नौकरशाही के भीतर भी UPSC Lateral Entry को लेकर असंतोष बढ़ रहा है। कई वरिष्ठ अधिकारी इस प्रक्रिया को पारंपरिक भर्ती प्रक्रियाओं के विपरीत मानते हैं, जिससे उनकी पदोन्नति और करियर ग्रोथ पर असर पड़ सकता है।
जनता की प्रतिक्रिया: जनता के बीच भी इस मुद्दे को लेकर मिश्रित प्रतिक्रिया देखने को मिली है। कई लोगों का मानना है कि UPSC Lateral Entry से पारंपरिक भर्ती प्रक्रियाओं की अहमियत कम हो जाती है, जबकि कुछ इसे एक सकारात्मक कदम के रूप में देखते हैं।
क्या है आगे की राह?
UPSC Lateral Entry के मुद्दे पर सरकार का यू-टर्न भविष्य में इस प्रक्रिया के लिए क्या संकेत देता है, यह देखना दिलचस्प होगा। यह संभव है कि सरकार अब इस मुद्दे पर अधिक ध्यान से विचार करेगी और अधिक पारदर्शिता और संतुलन के साथ आगे बढ़ेगी।
केंद्र सरकार का UPSC Lateral Entry पर यू-टर्न एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम है, जो न केवल इस प्रक्रिया की जटिलता को उजागर करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि सरकार को जनता, नौकरशाही और राजनीतिक दलों के बीच संतुलन बनाने में कितनी कठिनाई हो रही है। आने वाले दिनों में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सरकार इस मुद्दे को कैसे संभालती है और क्या इस प्रक्रिया में कोई और बदलाव देखने को मिलते हैं।
केंद्र सरकार के दूसरे कार्यकाल की कई घटनाएं अब भी जनता के मन में ताजा हैं। जब किसान कई महीनों तक दिल्ली की सीमाओं पर बैठे रहे और सरकार ने उनके तीन कृषि कानूनों को वापस लेने का फैसला आखिरकार कर लिया। इसी तरह, शाहीन बाग का धरना भी देशभर में चर्चा का विषय बना रहा, लेकिन सरकार ने नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) को वापस नहीं लिया, सिर्फ इसे कुछ समय के लिए टाल दिया गया। ऐसे समय में जब सरकार ने इन मुद्दों पर झुकने का फैसला नहीं किया, UPSC Lateral Entry के मुद्दे पर सरकार का यू-टर्न लेना कई सवाल खड़े कर रहा है।
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UPSC Lateral Entry का महत्व
UPSC Lateral Entry का उद्देश्य सरकारी तंत्र में ऐसे अनुभवी व्यक्तियों को शामिल करना है, जो अपने क्षेत्र में विशेष विशेषज्ञता रखते हैं। इस फैसले से सरकार को फायदा होना चाहिए था, क्योंकि आईएएस अधिकारियों के विपरीत, ये लोग विशेष फील्ड में गहराई से कार्य कर चुके होते हैं। उदाहरण के लिए, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और पूर्व वित्त सचिव मोंटेक सिंह अहलूवालिया UPSC Lateral Entry के माध्यम से भारतीय शासन व्यवस्था में शामिल किए गए थे और उन्होंने अपने कार्यकाल में बेहतरीन काम किया था। इसलिए, UPSC Lateral Entry देश के लिए एक व्यवहारिक और लाभदायक कदम माना जा रहा था।
सरकार का यू-टर्न और उसके कारण
हाल ही में 17 अगस्त को यूपीएससी ने संयुक्त सचिव जैसे सीनियर पदों के लिए 45 पोस्ट निकाली, जिसने राजनीतिक हलचल पैदा कर दी। बीजेपी के विरोधी दलों ने इस कदम का कड़ा विरोध किया, और यहां तक कि बीजेपी के सहयोगी दलों ने भी इसके खिलाफ आवाज उठाई। इस विरोध के चलते सरकार ने तीन दिनों के भीतर इस विज्ञापन को वापस ले लिया। इस यू-टर्न ने यह संकेत दिया कि सरकार विपक्ष के दबाव में आकर अपने फैसले बदल रही है, बजाय इसके कि वह जनता के बीच जाकर अपनी बात समझाए।
दुष्प्रचार का डर
UPSC Lateral Entry के साथ ही, सरकार ने वक्फ बोर्ड संशोधन बिल और दलित सब कोटे के मुद्दे पर भी तेजी से फैसले बदल दिए। इन मुद्दों पर जल्दबाजी में लिए गए फैसले यह दर्शाते हैं कि सरकार अपने सहयोगी दलों से अधिक विपक्ष के दुष्प्रचार से डर रही है।
सरकार का हिलता कॉन्फिडेंस
केंद्र सरकार के इस तरह के त्वरित निर्णय यह सवाल उठाते हैं कि क्या एनडीए सरकार अपने पहले दो कार्यकाल के मुकाबले खुद को कमजोर महसूस कर रही है। UPSC Lateral Entry जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे पर सरकार का बार-बार यू-टर्न लेना इस बात का संकेत हो सकता है कि सरकार का आत्मविश्वास हिल गया है।