आज एक विशेष सूर्यग्रहण की स्थिति बन रही है। अब तक के सबसे लम्बे समय तक चलने वाला सूर्यग्रहण होगा सूर्यग्रहण का काल 5 घंटे 10 मिनट का होगा। इस काल के दौरान, 4 मिनट 11 सेकंड के लिए होगा। जाने क्या शुभ अशुभ होगा

नई दिल्ली:  आज, यानी 8 अप्रैल के वर्ष का प्रथम सूर्यग्रहण  देखने को मिलेगा। यह ग्रहण एक पूर्ण सूर्यग्रहण होगा और इसकी अवधि अब तक के सबसे लंबे सूर्यग्रहणों में से एक होगी। इस खगोलीय घटना के समय, नासा विशेष प्रयोग आयोजित करने वाला है।सूर्य ग्रहण का आरंभ 8 अप्रैल की रात 9 बजकर 12 मिनट पर होने वाला है और इसका समापन 9 अप्रैल को प्रातः 2 बजकर 22 मिनट पर होगा। इस घटना के कारण, इस वर्ष के सूर्य ग्रहण की कुल अवधि 5 घंटे 10 मिनट होगी, और इस दौरान 4 मिनट 11 सेकंड के लिए पूरी तरह से आकाश में अंधकार छा जाएगा।

 

सूर्य ग्रहण का दृश्य मैक्सिको, अमेरिका के उत्तरी हिस्से, कनाडा, जमैका, आयरलैंड के उत्तर-पश्चिमी इलाके, क्यूबा, डोमिनिकन गणराज्य, कोस्टा रिका, पश्चिमी यूरोपीय क्षेत्रों, फ्रेंच पोलिनेशिया, प्रशांत महासागर, अटलांटिक और आर्कटिक में होगा। सर्वप्रथम, मैक्सिको के माज़ाट्लान नगर में इस खगोलीय घटना को देखा जाएगा।इस घटना का प्रदर्शन भारतीय क्षेत्रों में नहीं होगा, इसलिए यहाँ पर सूतक काल का प्रभाव भी नहीं पड़ेगा। तथापि, दान-पुण्य के कार्य किए जा सकते हैं, जिससे पुण्य की प्राप्ति संभव हो सकती है।

नासा के विज्ञानिक इस अवसर पर एक विशेष प्रयोग करने की योजना बना रहे हैं। वास्तव में, नासा की एक टुकड़ी आज तीन रॉकेट प्रक्षेपित करने जा रही है, जिसमें से पहला रॉकेट ग्रहण आरंभ होने से पहले, दूसरा ग्रहण के पीक समय पर, और तीसरा ग्रहण समाप्त होने के 45 मिनट बाद प्रक्षेपित किया जाएगा।

नासा इस वैज्ञानिक प्रक्रिया के द्वारा, तीनों अवस्थाओं में वातावरणीय परिवर्तनों को दस्तावेज़ीकृत करना चाहता है।

यह खगोलीय घटना सदैव अमावस्या के दिन होती है। इस दौरान चंद्रमा सूर्य के केवल कुछ भागों को आच्छादित करता है, जिसे आंशिक या खंडित सूर्य ग्रहण कहा जाता है, लेकिन कभी-कभार चंद्रमा सूर्य को पूर्ण रूप से ढक लेता है, जिसे पूर्ण सूर्य ग्रहण कहते हैं। यह भी विचारणीय है कि पूर्ण सूर्य ग्रहण केवल पृथ्वी के एक छोटे भाग में ही अवलोकित किया जा सकता है, जिसका विस्तार अधिकतम 250 किलोमीटर तक होता है, और इसे शेष पृथ्वी पर आंशिक सूर्य ग्रहण के रूप में ही देखा जा सकता है। चंद्रमा की गति के कारण, पूर्ण सूर्य ग्रहण के समय सूर्य के समक्ष से होकर गुजरने में लगभग दो घंटे का समय लगता है, और इस अवधि में चंद्रमा अधिकतम सात मिनट के लिए सूर्य को पूर्णतः ढक सकता है, जिसके फलस्वरूप पृथ्वी के उस भाग में दिन के समय भी रात्रि जैसी स्थिति निर्मित हो जाती है

जब चंद्रमा अपनी परिक्रमा के दौरान पृथ्वी के निकटतम बिंदु पर हो और उसी समय यदि वह सूर्य के सामने आ जाए, तो सूर्य का प्रकाश पूर्णतया अवरुद्ध हो जाता है। इसे ही पूर्ण सूर्य ग्रहण कहते हैं। इस अवस्था में सूर्य का प्रकाश पृथ्वी तक नहीं पहुँच पाता, जिसके कारण अंधकार छा जाता है (हालाँकि यह स्थिति पृथ्वी के केवल एक बहुत छोटे भाग में ही उत्पन्न होती है)। इस तरह के ग्रहण को पूर्ण सूर्य ग्रहण कहा जाता है

आंशिक सूर्य ग्रहण क्या है?

आंशिक सूर्य ग्रहण तब होता है जब चंद्रमा पृथ्वी और सूर्य के बीच से गुजरता है, लेकिन सूर्य को पूरी तरह से ढक नहीं पाता। इस स्थिति में, चंद्रमा सूर्य के केवल एक हिस्से को ढकता है, जिससे सूर्य का एक भाग पृथ्वी से दिखाई नहीं देता है।

आंशिक सूर्य ग्रहण क्यों होता है?

आंशिक सूर्य ग्रहण तब होता है जब चंद्रमा, पृथ्वी और सूर्य एक सीध में होते हैं, लेकिन चंद्रमा पृथ्वी से थोड़ा दूर होता है। चंद्रमा का आकार पृथ्वी से देखने पर सूर्य के आकार से थोड़ा छोटा होता है, इसलिए जब चंद्रमा सूर्य के सामने से गुजरता है, तो वह उसे पूरी तरह से ढक नहीं पाता है।

आंशिक सूर्य ग्रहण कैसा दिखता है?

आंशिक सूर्य ग्रहण के दौरान, सूर्य का एक हिस्सा चंद्रमा द्वारा ढका हुआ दिखाई देता है। सूर्य का ढका हुआ भाग अंधेरा दिखाई देता है, जबकि बाकी का हिस्सा चमकीला रहता है।

आंशिक सूर्य ग्रहण कब होता है?

आंशिक सूर्य ग्रहण साल में कई बार हो सकता है। यह आमतौर पर तब होता है जब चंद्रमा अपनी कक्षा में पृथ्वी के करीब होता है।

आंशिक सूर्य ग्रहण देखना सुरक्षित है?

आंशिक सूर्य ग्रहण को नंगी आंखों से देखना सुरक्षित नहीं है। सूर्य के प्रकाश को सीधे देखने से आंखों को नुकसान हो सकता है। आंशिक सूर्य ग्रहण को देखने के लिए विशेष चश्मे या ग्रहण फिल्टर का उपयोग करना चाहिए।

आंशिक सूर्य ग्रहण के बारे में कुछ रोचक तथ्य:

  • आंशिक सूर्य ग्रहण पृथ्वी के सभी भागों से नहीं देखा जा सकता है।
  • आंशिक सूर्य ग्रहण की अवधि कुछ मिनटों से लेकर कुछ घंटों तक हो सकती है।
  • आंशिक सूर्य ग्रहण एक प्राकृतिक घटना है और यह किसी भी तरह से पृथ्वी या सूर्य को नुकसान नहीं पहुंचाता है।कभी-कभी ऐसा अवसर भी आता है जब चंद्र धरती से बहुत अधिक फासले पर होता है, और इस दौरान वह धरा और सूर्य के मध्य आ जाता है. इस परिस्थिति में केवल सूर्य का मध्य भाग चंद्र के पीछे छिपा रहता है, और धरती से देखने पर सूर्य पूर्णतः आच्छादित नहीं होता, बल्कि एक रिंग के समान प्रतीत होता है. इस अवस्था में सूर्य का मध्य भाग पूर्ण रूप से अंधेरे में लिपट जाता है, परंतु उसका आवृत्त भाग उजाले से भरा प्रकाश पुंज की तरह नज़र आता है, जिसे वलय कहते हैं. जब सूर्य इस तरह से दिखाई देता है, तब उसे वलयाकार सूर्यग्रहण कहते हैं.

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