Today Varanasi news Update 2024 : आज शुक्रवार को ज्ञानवापी में जुमे की नमाजियों की संख्या 2000 के करीब रही। पुलिस आस-पास के क्षेत्रों में ड्रोन के माध्यम से निगरानी कर रही है

Uttar pradesh : शुक्रवार को ज्ञानवापी में जुमे की नमाज शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हुई। इस अवसर पर नमाजियों की संख्या में वृद्धि हुई, जिसमें लगभग 2000 नमाजी शामिल हुए, जो पिछले रिकॉर्ड्स को तोड़ते हुए एक बड़ी संख्या है। नमाज के समापन के बाद, एक तकरीर (भाषण) आयोजित की गई जिसमें 45 मिनट तक देश में अमन और भाईचारे का संदेश दिया गया। यह घटना समाज में सद्भाव और एकता की महत्वपूर्ण भावना को दर्शाती है, जहां लोग धार्मिक प्रथाओं के माध्यम से एक साथ आते हैं और सामाजिक समरसता के संदेश को आगे बढ़ाते हैं।

ज्ञानवापी में आयोजित तकरीर में तहखाने से संबंधित हालिया फैसले पर कोई चर्चा नहीं हुई। इसके बजाय, तकरीर में देश के लोकतंत्र और उसके मौजूदा हालात पर महत्वपूर्ण चर्चा की गई, जिसमें यह इशारा किया गया कि लोकतंत्र कमजोर पड़ रहा है। जुमे की नमाज के दौरान ज्ञानवापी में नमाजियों की बड़ी संख्या के कारण, जगह पूरी तरह से भर गई थी। इस स्थिति में, काशी विश्वनाथ धाम के गेट नंबर चार पर कुछ नमाजियों को रोक दिया गया था। पुलिस प्रशासन ने इसे सुरक्षा और व्यवस्था के दृष्टिकोण से आवश्यक बताया, यह कहते हुए कि अंदर पहले से ही बहुत अधिक भीड़ है। लोगों से शहर की अन्य मस्जिदों में नमाज अदा करने की सलाह दी गई, ताकि सभी सुरक्षित और संगठित ढंग से अपनी धार्मिक प्रथाओं का पालन कर सकें।


हिंदू पक्ष की पूजा शुरू होने के बाद, शुक्रवार को जुमे की नमाज के लिए ज्ञानवापी में नमाजियों की एक बड़ी संख्या पहुंच रही है। इस स्थिति में शांति और सद्भाव को बनाए रखने के लिए अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी के ज्वॉइंट सेक्रेटरी यासीन ने लोगों से अपील की है। पुलिस आस-पास के क्षेत्रों में ड्रोन के माध्यम से निगरानी कर रही है ताकि सुरक्षा और व्यवस्था बनी रहे। नमाजियों की बढ़ती संख्या को देखते हुए प्रशासन ने सुरक्षा उपायों में वृद्धि की है। जुमे की नमाज के मद्देनजर, प्रशासन ने सुरक्षा व्यवस्था को और अधिक पुख्ता किया है, ताकि सभी नागरिक सुरक्षित और शांतिपूर्ण ढंग से अपनी धार्मिक प्रथाओं का पालन कर सकें। इस प्रकार के उपाय समाज में सद्भाव और समझदारी बनाए रखने में महत्वपूर्ण होते हैं, खासकर जब विभिन्न समुदायों के लोग एक साथ आते हैं।

अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी के जॉइंट सेक्रेटरी मोहम्मद यासीन ने नमाज अदा करने जाते समय शांति बनाए रखने के लिए लोगों से अपील की है। उनका कहना है कि उन्हें किसी से कोई नाराजगी नहीं है, जो समाज में सद्भाव और आपसी समझ का संकेत देता है। इसके अलावा, ज्ञानवापी मस्जिद और उसके आस-पास के क्षेत्रों में सुरक्षा को मजबूत किया गया है, जिसमें भारी पुलिस बल तैनात किया गया है। ड्रोन का इस्तेमाल करके पूरे क्षेत्र पर नजर रखी जा रही है, ताकि किसी भी प्रकार की अवांछित गतिविधि को रोका जा सके और सभी नागरिक सुरक्षित और शांतिपूर्ण ढंग से अपनी धार्मिक प्रथाओं का पालन कर सकें। ये उपाय समाज में शांति और सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण हैं, खासकर जब विशेष धार्मिक अवसरों पर बड़ी संख्या में लोग एकत्रित होते हैं

आपके द्वारा उल्लेखित बयान में भारतीय इतिहास के एक महत्वपूर्ण पहलू की चर्चा की गई है। यह बयान ब्रिटिश उपनिवेशवाद के समय की नीति ‘फूट डालो और राज करो’ की ओर इशारा करता है। इस नीति के तहत, ब्रिटिश सरकार ने भारत के विभिन्न समुदायों और धार्मिक समूहों के बीच विभाजन को बढ़ावा दिया, ताकि वे अपनी सत्ता को मजबूत रख सकें।

1857 की पहली स्वतंत्रता संग्राम की घटना का उल्लेख करते हुए, यह बताया गया है कि उस समय विभिन्न धार्मिक समूहों के लोग ब्रिटिश शासन के खिलाफ एकजुट हो गए थे। इस एकता को देखकर ब्रिटिश शासकों ने भारतीय समाज में और अधिक विभाजन पैदा करने की नीति अपनाई, जिससे उन्हें अपनी सत्ता को बनाए रखने में मदद मिली।
आपके द्वारा उल्लेखित बयान सैफुल्लाह रहमानी के विचारों को दर्शाता है, जिसमें उन्होंने मुस्लिम समुदाय की धार्मिक स्थलों के प्रति सोच और न्यायिक प्रक्रिया पर प्रकाश डाला है। उनका कहना है कि अगर मुस्लिम समुदाय अन्य धार्मिक स्थलों पर जबरन कब्जा करने की सोच रखते, तो इतने मंदिर अस्तित्व में नहीं होते। इससे वह यह संकेत देना चाहते हैं कि मुस्लिम समुदाय धार्मिक सहिष्णुता और सम्मान की भावना रखता है।

सैफुल्लाह रहमानी ने न्यायिक प्रक्रिया पर भी चिंता जताई, जिसमें उनका मानना है कि कुछ मामलों में न्यायालयों ने जल्दबाजी में निर्णय दिया और दूसरे पक्ष को अपना पक्ष रखने का पर्याप्त मौका नहीं दिया। उनके अनुसार, इससे न्यायपालिका पर लोगों का विश्वास कम हुआ है। बाबरी मस्जिद के मामले का जिक्र करते हुए उन्होंने उल्लेख किया कि अदालत ने माना कि मस्जिद के नीचे मंदिर नहीं था, लेकिन फिर भी निर्णय एक विशेष तबके के पक्ष में गया। इस बयान के माध्यम से वह न्यायिक प्रक्रिया में समानता और निष्पक्षता की आवश्यकता पर बल दे रहे हैं, साथ ही साथ विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच सम्मान और सहिष्णुता की भावना को बढ़ावा देने की भी बात कर रहे हैं।

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