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Today News Update 2024 : राहुल गांधी के लिए सैम पित्रोदा की आवश्यकता या मजबूरी के पीछे क्या कारण क्यों कांग्रेस ने उनकी वापसी में इतनी जल्दबाजी दिखाई ?

 New Delhi : कांग्रेस पार्टी के लिए परेशानी का सबब बने सैम पित्रोदा ने एक बार फिर से ओवरसीज कांग्रेस के अध्यक्ष के तौर पर पदभार संभाल लिया है। लोकसभा चुनाव के दौरान दिए गए उनके दो विवादित बयानों के कारण पार्टी को कठिन स्थिति का सामना करना पड़ा था, जिसके चलते उन्होंने स्वयं ही पार्टी से इस्तीफा दे दिया था। हालांकि, चुनाव परिणाम आने के बाद महीने भर भी नहीं बीते थे कि उन्होंने वापसी की और उनकी पुनः नियुक्ति हो गई।
यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि सैम पित्रोदा की इतनी शीघ्रता से वापसी क्यों आवश्यक थी। कांग्रेस पार्टी को उनकी ऐसी कौन सी अहमियत है? क्या लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी के पास ऐसे सलाहकारों की कमी हो गई है जो पित्रोदा की तत्काल वापसी को आवश्यक बना देती है

कांग्रेस पार्टी के जयराम रमेश ने स्पष्ट किया कि सैम पित्रोदा की वापसी का निर्णय इस गारंटी के तहत लिया गया है कि वे भविष्य में किसी भी विवाद को जन्म नहीं देंगे। इस बीच, भाजपा ने इस मौके का उपयोग कांग्रेस पर हमला करने के लिए किया है। भाजपा ने आरोप लगाया कि पित्रोदा की वापसी से 1984 के सिख विरोधी दंगों और पुलवामा हमले के बारे में उनकी टिप्पणियों के प्रति कांग्रेस का समर्थन स्पष्ट हो गया है। भाजपा ने सवाल उठाया कि क्या पित्रोदा की टिप्पणियों से दूरी बनाने के कांग्रेस के दावे मात्र एक छलावा थे? फिर भी, कांग्रेस ने निश्चित ही कुछ सोच-समझकर उनकी पुनः नियुक्ति की है। आगे देखना होगा कि उनकी वापसी के पीछे क्या कारण छिपे हैं।

Arvind Kejriwal :  अरविंद केजरीवाल ने भले ही कांग्रेस के साथ मिलकर लोकसभा चुनाव लड़कर कोई खास फायदा नहीं उठाया हो, लेकिन उनके अलग होने से दिल्ली विधानसभा चुनावों में उन्हें भारी नुकसान हो सकता है। दिल्ली समेत कई राज्यों में आम आदमी पार्टी विपक्षी इंडिया गठबंधन का अंग बनी थी। हालांकि, पंजाब के चुनावों में AAP और कांग्रेस ने एक-दूसरे के खिलाफ चुनावी रण में प्रतिस्पर्धा की थी।

दिल्ली में जहां कांग्रेस के लिए आम आदमी पार्टी के संग चुनावी समझौता लाभदायक सिद्ध नहीं हुआ, वहीं पंजाब में अकेले मैदान में उतरकर कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी से बेहतर परिणाम दिखाया, जहां उसने 13 में से 7 लोकसभा सीटें अपने नाम कीं। पंजाब में, जहां आम आदमी पार्टी सत्ता में थी, उसे केवल तीन सीटें हासिल हो पाईं। चंडीगढ़ में, जो कि एक केंद्र शासित प्रदेश है, केवल एक ही सीट थी जहां से कांग्रेस और AAP के गठबंधन उम्मीदवार, मनीष तिवारी ने जीत हासिल कर संसद में प्रवेश किया

Mamata Banerjee : ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में जोरदार जीत हासिल की है, और लोकसभा चुनाव में भी उन्होंने भाजपा को मात दी है। वहीं, दिल्ली में अरविंद केजरीवाल एक भी सीट अपने दम पर जीतने की बात तो छोड़िए, कांग्रेस के साथ गठबंधन करके भी जीत नहीं पाए हैं। पंजाब में, जहां 2014 में आम आदमी पार्टी ने चार सांसद दिए थे, वहां भी वे 2019 में कांग्रेस की तुलना में पीछे रह गए। जहां दिल्ली में भाजपा का प्रयोग सफल रहा, वहीं पंजाब में आम आदमी पार्टी की रणनीति में कहां कमी रह गई, इस पर भी सवाल उठते हैं।

अरविंद केजरीवाल को स्मरण रखना चाहिए कि जिस प्रकार पंजाब में कांग्रेस ने उनके लिए चुनौतियाँ खड़ी कीं, उसी तरह दिल्ली में भी वे उनके लिए संकट उत्पन्न कर सकती है। कांग्रेस जिस गहनता से दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए योजना बना रही है, उसमें पंजाब के तजुर्बे का भी योगदान है।

कांग्रेस ने दिल्ली के विशेष इलाकों जैसे कि तिलक नगर, हरि नगर, राजौरी गार्डन, और द्वारका के लिए एक व्यापक योजना तैयार की है। इस मिशन का आरंभ जुलाई से होगा। इस योजना के अनुसार, पंजाब के कांग्रेसी नेता दिल्ली में दस दिन का प्रवास करेंगे, जहां वे निवासियों से संवाद स्थापित करेंगे और उन्हें आम आदमी पार्टी के स्थान पर कांग्रेस को समर्थन देने के कारण बताएंगे। यह पहल चुनाव तक प्रति माह जारी रहेगी, पंजाब के अनुभवों का उपयोग करते हुए।

 

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