Shailaja Paik: दलित महिलाओं की आवाज
भारतीय मूल की अमेरिकी प्रोफेसर (Shailaja Paik) को दलित महिलाओं पर किए गए उनके शोध और लेखन कार्य के लिए प्रतिष्ठित मैकआर्थर फाउंडेशन द्वारा 800,000 डॉलर का “जीनियस” अनुदान प्राप्त हुआ है। यह अनुदान हर साल उन व्यक्तियों को प्रदान किया जाता है जो असाधारण उपलब्धियों या क्षमता के धनी होते हैं। शैलजा पाइक को यह पुरस्कार मिलने से दलित महिलाओं के संघर्ष और उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं पर किए गए उनके कार्य को अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिली है।
यूनिवर्सिटी ऑफ सिनसिनाटी में Shailaja Paik की भूमिका
शैलजा पाइक वर्तमान में यूनिवर्सिटी ऑफ सिनसिनाटी में इतिहास की प्रतिष्ठित शोध प्रोफेसर हैं और वह महिला, लिंग और यौन अध्ययन (Women’s, Gender, and Sexuality Studies) और एशियाई अध्ययन (Asian Studies) विभाग में भी संलग्न हैं। उनके कार्य को देखकर मैकआर्थर फाउंडेशन ने यह कहते हुए उनकी उपलब्धियों को मान्यता दी, “दलित महिलाओं के विविध अनुभवों पर केंद्रित उनके शोध कार्य के माध्यम से शैलजा पाइक जातिगत भेदभाव की स्थायी प्रकृति और अछूतता को बनाए रखने वाली ताकतों को उजागर करती हैं।”
दलित तमाशा कलाकारों का संघर्ष
फाउंडेशन ने यह भी बताया कि Shailaja Paik का हालिया प्रोजेक्ट महाराष्ट्र में दलितों द्वारा सदियों से प्रचलित “तमाशा” नामक एक लोकप्रिय अश्लील लोक रंगमंच के महिला कलाकारों के जीवन पर केंद्रित था। महाराष्ट्र राज्य के तमाशा को सम्मानजनक और मराठी संस्कृति का हिस्सा बनाने के प्रयासों के बावजूद, दलित तमाशा महिलाओं पर “अश्लीलता” का दाग लगा रहता है। इस प्रोजेक्ट के आधार पर Shailaja Paik ने “The Vulgarity of Caste: Dalits, Sexuality, and Humanity in Modern India” नामक पुस्तक प्रकाशित की, जिसमें उन्होंने जातिगत उत्पीड़न और महिलाओं के यौन उत्पीड़न के मुद्दों को विस्तार से बताया है।
जातिगत भेदभाव और यौन शोषण पर गहन शोध
Shailaja Paik का शोध दलित महिलाओं के साथ हो रहे जातिगत भेदभाव और यौन शोषण के विभिन्न आयामों को उजागर करता है। उनके काम में महिलाओं की सामाजिक स्थिति और उनके आत्मसम्मान को बनाए रखने के संघर्ष पर विशेष जोर दिया गया है। उन्होंने अपने शोध के माध्यम से यह दिखाया है कि कैसे लिंग और यौनिकता को दलित महिलाओं के व्यक्तित्व और गरिमा को नकारने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
आंबेडकर की दृष्टि पर आलोचनात्मक नजरिया
Shailaja Paik ने भारतीय संविधान के निर्माता और बीसवीं सदी के सबसे प्रभावशाली जाति उन्मूलनवादी डॉ. बी.आर. आंबेडकर के विचारों की भी आलोचना की है। उनका मानना है कि डॉ. आंबेडकर की दृष्टि में भी महिलाओं के अधिकारों के मुद्दों को पर्याप्त स्थान नहीं मिला।
व्यक्तिगत जीवन: प्रेरणा का स्रोत
Shailaja Paik का व्यक्तिगत जीवन भी उनके कार्य से गहराई से जुड़ा हुआ है। उन्होंने एनपीआर (National Public Radio) को दिए एक साक्षात्कार में बताया कि वह खुद दलित समुदाय से आती हैं और पुणे में एक झुग्गी क्षेत्र में पली-बढ़ी हैं। उनके पिता की शिक्षा के प्रति प्रतिबद्धता ने उन्हें प्रेरित किया और इसी कारण उन्होंने उच्च शिक्षा की दिशा में कदम बढ़ाया। पुणे की सावित्रीबाई फुले यूनिवर्सिटी से मास्टर्स डिग्री प्राप्त करने के बाद, उन्होंने यूनाइटेड किंगडम की वारविक यूनिवर्सिटी से पीएचडी की डिग्री हासिल की।
येल यूनिवर्सिटी से अंतर्राष्ट्रीय मान्यता तक
Shailaja Paik ने येल यूनिवर्सिटी में दक्षिण एशियाई इतिहास की अतिथि सहायक प्रोफेसर के रूप में भी कार्य किया। उनके शोध कार्य ने उन्हें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति दिलाई और अब मैकआर्थर फाउंडेशन के जीनियस अनुदान ने उनकी इस ख्याति को और बढ़ा दिया है।
मैकआर्थर फेलोशिप: जीनियस ग्रांट
मैकआर्थर फेलोशिप जिसे “जीनियस ग्रांट” के नाम से जाना जाता है, अकादमिक, विज्ञान, कला और समाजसेवा के विभिन्न क्षेत्रों के प्रतिभाशाली और रचनात्मक व्यक्तियों को प्रदान की जाती है। यह अनुदान पांच वर्षों में वितरित होता है और इसमें किसी प्रकार की शर्तें नहीं होतीं। यह पूरी तरह से चयनकर्ताओं द्वारा की गई अनुशंसाओं पर आधारित होता है और इसके लिए कोई आवेदन प्रक्रिया या प्रचार नहीं होता है।
जातिगत भेदभाव और यौन उत्पीड़न के खिलाफ शैलजा का संदेश
Shailaja Paik का कार्य न केवल इतिहास के क्षेत्र में महत्वपूर्ण है, बल्कि वह भारत में जातिगत भेदभाव और यौन उत्पीड़न के मुद्दों को अंतरराष्ट्रीय मंच पर लाने के लिए सराहनीय प्रयास कर रही हैं। उनके द्वारा किए गए शोध और लेखन ने दलित महिलाओं के साथ हो रहे अन्याय को न केवल उजागर किया है, बल्कि उन्हें एक सशक्त आवाज भी दी है। उनका यह प्रयास न केवल दलित समुदाय के लिए बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश देता है कि जातिगत भेदभाव और यौन उत्पीड़न का अंत होना चाहिए।
Shailaja Paik का भविष्य के लिए योगदान
Shailaja Paik को प्राप्त मैकआर्थर फेलोशिप न केवल उनके कार्य की मान्यता है, बल्कि यह इस बात का प्रमाण भी है कि उनके शोध ने समाज में एक महत्वपूर्ण प्रभाव डाला है। उनके कार्य से प्रेरित होकर, आने वाले समय में और भी लोग जातिगत भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाएंगे और समाज को एक समानता की ओर ले जाएंगे।
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