Kris Gopalakrishnan पर SC/ST अत्याचार अधिनियम के तहत मामला

Kris Gopalakrishnan

Kris Gopalakrishnan और बालाराम को जातिवादी धमकियों के आरोप में मामला दर्ज

इन्फोसिस के सह-संस्थापक सेनापति Kris Gopalakrishnanऔर भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) के पूर्व निदेशक बालाराम के खिलाफ सोमवार को एससी/एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया। यह मामला बेंगलुरु के सदाशिव नगर पुलिस स्टेशन में दर्ज किया गया और इसे 71वीं सिटी सिविल और सेशन कोर्ट (CCH) के आदेशों के तहत दर्ज किया गया।

इस मामले का शिकायतकर्ता दुर्गप्पा है, जो बोवी समुदाय से संबंधित हैं और भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) के सेंटर फॉर सस्टेनेबल टेक्नोलॉजी में फैकल्टी सदस्य रहे थे। दुर्गप्पा ने आरोप लगाया कि उन्हें एक फर्जी जाल में फंसाया गया था और इसके बाद 2014 में उन्हें सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था। उन्होंने आगे यह भी दावा किया कि उन्हें जातिवादी गालियाँ दी गईं और जातिवादी धमकियाँ दी गईं।

इस मामले में अन्य आरोपियों में गोविंदन रंगराजन, श्रीधर वारियर, संध्या विश्वस्वरैया, हरि के वी एस, दासप्पा, बालाराम पी, हेमलता मिहीशी, चट्टोपाध्याय के, प्रदीप डी सावकर और मनोहरन शामिल हैं। हालांकि, इस मामले पर आईआईएससी के संकाय या Kris Gopalakrishnan की ओर से कोई तत्काल प्रतिक्रिया नहीं आई है, जो आईआईएससी बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज के सदस्य भी हैं।

Kris Gopalakrishnan कौन हैं?

Kris Gopalakrishnan इन्फोसिस के सह-संस्थापक हैं और उन्होंने 2007 से 2011 तक कंपनी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO) और प्रबंध निदेशक (MD) के रूप में कार्य किया। इसके बाद वे 2011 से 2014 तक कंपनी के उपाध्यक्ष (Vice Chairman) रहे।

भारत सरकार ने जनवरी 2011 में गोपालकृष्णन को पद्मभूषण, भारत के तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान से नवाजा था। वे भारतीय उद्योग की शीर्ष चैंबर, ‘कन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री’ (CII) के अध्यक्ष भी रह चुके हैं और जनवरी 2014 में दावोस में विश्व आर्थिक मंच (World Economic Forum) के सह-अध्यक्ष के रूप में कार्य किया था।

गोपालकृष्णन ने अपनी शिक्षा भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT), मद्रास से भौतिकी और कंप्यूटर विज्ञान में मास्टर डिग्री प्राप्त की। उन्हें भारतीय राष्ट्रीय अभियंत्रण अकादमी (INAE) का फेलो और इलेक्ट्रॉनिक्स और दूरसंचार अभियंत्रण संस्थान (IETE) का मानद फेलो भी माना जाता है, जैसा कि उन्होंने अपने लिंक्डइन प्रोफाइल में उल्लेख किया है।

Kris Gopalakrishnan पर आरोप और इसके परिणाम

Kris Gopalakrishnan पर लगाए गए आरोप, विशेष रूप से जातिवादी धमकियों के संबंध में, यह एक गंभीर मुद्दा है। अगर इन आरोपों को सही माना जाता है, तो यह न केवल गोपालकृष्णन और अन्य आरोपियों के लिए बल्कि आईआईएससी जैसी प्रतिष्ठित संस्था के लिए भी एक बड़ा झटका हो सकता है। गोपालकृष्णन की प्रतिष्ठा और उनके द्वारा किए गए कार्यों को देखते हुए इस मामले में उचित जांच की आवश्यकता है।

जिन आरोपियों का नाम इस मामले में लिया गया है, उनमें कुछ प्रमुख व्यक्ति आईआईएससी के कर्मचारी और अन्य संगठनों से संबंधित हैं। आरोप यह है कि दुर्गप्पा को एक जाल में फंसाया गया और उसके बाद जातिवादी टिप्पणी और धमकियों का सामना करना पड़ा। इस प्रकार के आरोप किसी भी व्यक्ति के लिए गंभीर हो सकते हैं, खासकर जब वह किसी प्रतिष्ठित संस्था का हिस्सा हो।

क्या यह मामला वास्तव में जातिवाद का है?

इस मामले में जो आरोप लगाए गए हैं, वे जातिवाद से संबंधित हैं, और इसे भारतीय समाज में गहरी चिंता के रूप में देखा जा सकता है। जातिवाद की समस्या भारतीय समाज में लंबे समय से मौजूद है और यह विभिन्न क्षेत्रों में, विशेष रूप से कार्यस्थलों और शैक्षिक संस्थानों में दिखाई देती है।

Kris Gopalakrishnan और बालाराम जैसे प्रमुख व्यक्तियों पर इस तरह के आरोप अगर सही साबित होते हैं, तो यह भारतीय समाज में जातिवाद के प्रभाव को और अधिक उजागर कर सकता है। यह मामले के साथ-साथ यह मुद्दा भी सामने आता है कि समाज में जातिवाद के खिलाफ सही कदम उठाए जाने की आवश्यकता है।

यह आरोप भारतीय समाज के लिए एक सबक है

इस मामले का एक बड़ा संदेश यह है कि समाज में जातिवाद के खिलाफ सख्त कदम उठाए जाने चाहिए। चाहे वह किसी भी व्यक्ति या संस्था का सदस्य हो, जातिवाद को किसी भी रूप में सहन नहीं किया जाना चाहिए। अगर इस मामले में आरोप सही साबित होते हैं, तो यह भारतीय समाज के लिए एक और बड़ा सबक हो सकता है कि जातिवाद के खिलाफ लड़ाई को और भी मजबूत किया जाए।

यह मुद्दा समाज में व्याप्त जातिवाद को समाप्त करने के लिए जरूरी कदम उठाने की आवश्यकता को रेखांकित करता है। भारतीय समाज में जातिवाद की मानसिकता को समाप्त करने के लिए शिक्षा, जागरूकता और कानूनी प्रक्रिया का पालन जरूरी है।

निष्कर्ष

Kris Gopalakrishnan और बालाराम पर लगाए गए आरोप गंभीर हैं, और अगर इन आरोपों को सही माना जाता है, तो यह भारतीय समाज और कार्यस्थलों में जातिवाद के खिलाफ उठाए गए कदमों के प्रति सवाल खड़ा कर सकता है। इस मामले में आगे की कानूनी प्रक्रिया और जांच से यह स्पष्ट होगा कि क्या यह आरोप सही हैं और इसके परिणामस्वरूप क्या कदम उठाए जाते हैं।

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