Allahabad High Court: ध्वस्तीकरण नोटिस पर 15 दिन की राहत!

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Allahabad High Court ने बहुचर्चित अवैध निर्माण मामले में दिया 15 दिनों का समय, जानिए पूरी जानकारी

Allahabad High Court ने एक महत्वपूर्ण आदेश में कुंडासर-महसी-नानपारा-महाराजगंज मार्ग पर स्थित अवैध निर्माणों को लेकर जारी ध्वस्तिकरण नोटिस के जवाब दाखिल करने के लिए प्रभावित निवासियों को 15 दिनों की मोहलत प्रदान की है। यह आदेश रविवार को Allahabad High Court की लखनऊ पीठ द्वारा जारी किया गया, जिसमें प्रभावित निवासियों को 4 नवंबर तक अपने जवाब दाखिल करने की अनुमति दी गई है। इसके बाद, राज्य सरकार को प्राप्त जवाबों की समीक्षा करने और उचित निर्णय देने का निर्देश दिया गया है।

यह आदेश तब आया जब Allahabad High Court “एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स” द्वारा दायर एक जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई हुई। इस याचिका में दावा किया गया कि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा दिए गए ध्वस्तिकरण नोटिस अवैध थे और हालिया सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के खिलाफ थे, जिसमें बुलडोज़र द्वारा ध्वस्तिकरण केवल विशिष्ट मामलों में ही अनुमति दी गई है।

Allahabad High Court का आदेश और याचिकाकर्ता की चिंता

जस्टिस एआर मसूदी और जस्टिस सुभाष विद्यर्थी की खंडपीठ ने इस मामले की सुनवाई की और निवासियों को केवल तीन दिन का अल्प समय दिया गया था, जो अत्यधिक कम था। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि इन निर्माणों की वैधता और इनके लिए उचित प्राधिकरण के होने के बारे में भी सवाल उठाए गए हैं। इस मामले में हाई कोर्ट ने यह सुनिश्चित किया कि 23 प्रभावित प्रतिष्ठानों को उचित समय मिले ताकि वे अपना पक्ष रख सकें।

अदालत ने कहा कि अगर प्रभावित निवासी दिए गए समय सीमा के भीतर अपने जवाब दाखिल करते हैं, तो सक्षम प्राधिकारी को इन जवाबों पर विचार करना चाहिए और एक तर्कसंगत आदेश देना चाहिए, जिसे प्रभावित पक्षों को सूचित किया जाना चाहिए। इस मामले में अगली सुनवाई 23 अक्टूबर को निर्धारित की गई है, जिसमें कोर्ट ने नोटिस प्राप्तकर्ताओं से पूरी सक्रियता के साथ कार्यवाही में शामिल होने का आग्रह किया है।

Allahabad High Court के आदेश का कानूनी और सामाजिक संदर्भ

यह मामला खासतौर पर तब चर्चा में आया जब बहराइच में कुंडासर-महसी-नानपारा-महाराजगंज मार्ग पर अवैध निर्माणों को लेकर स्थानीय प्रशासन ने 23 प्रतिष्ठानों को ध्वस्त करने के लिए नोटिस जारी किया। इन प्रतिष्ठानों में से अधिकतर मुस्लिम निवासियों के थे। इसके पीछे प्रमुख कारण था कि इस इलाके में हाल ही में हुए सांप्रदायिक हिंसा के बाद इस कार्रवाई की शुरुआत की गई थी, जिसमें राम गोपाल मिश्रा नामक व्यक्ति की गोली लगने से मौत हो गई थी। यह घटना एक जुलूस के दौरान संगीत बजाने को लेकर हुए विवाद से संबंधित थी।

इस सांप्रदायिक हिंसा के बाद, सरकार ने रोड कंट्रोल एक्ट, 1964 के तहत 23 अवैध निर्माणों को ध्वस्त करने के आदेश दिए। पब्लिक वर्क्स डिपार्टमेंट (PWD) ने जमीन पर जाकर निरीक्षण किया और लगभग 20 से 25 घरों को चिन्हित किया, जिनमें अब्दुल हामिद का घर भी शामिल था, जो मिश्रा की मौत के आरोपितों में से एक था।

Allahabad High Court और बुलडोज़र नीति पर विवाद

Allahabad High Court का यह आदेश विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह सरकार की बुलडोज़र नीति पर भी सवाल उठाता है। पिछले कुछ वर्षों में उत्तर प्रदेश में अवैध निर्माणों पर बुलडोज़र चलाकर उन्हें ध्वस्त करने की कार्रवाई तेज हो गई है। हालांकि, इस प्रक्रिया में कई बार यह आरोप लगे हैं कि इसका इस्तेमाल कुछ विशिष्ट समुदायों के खिलाफ किया जा रहा है। इस संबंध में हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने भी निर्देश दिए थे कि ध्वस्तिकरण की कार्रवाई केवल तयशुदा कानूनी प्रक्रियाओं का पालन करते हुए ही की जाए।

Allahabad High Court के इस मामले में भी यही चिंता व्यक्त की गई कि प्रभावित निवासियों को पर्याप्त समय नहीं दिया गया और उनके जवाबों पर विचार किए बिना ही ध्वस्तिकरण की योजना बनाई जा रही थी। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि अगर निवासियों के पास पर्याप्त दस्तावेज और वैध निर्माण के प्रमाण हैं, तो राज्य सरकार को उनकी समीक्षा करनी चाहिए और ध्वस्तिकरण से पहले उचित निर्णय लेना चाहिए।

धार्मिक और सांप्रदायिक संदर्भ

इस मामले में सांप्रदायिक तनाव के कारण भी स्थिति संवेदनशील हो गई है। राम गोपाल मिश्रा की हत्या के बाद इस क्षेत्र में हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच तनाव बढ़ गया था। Allahabad High Court ने इस मामले में कानून और न्याय की पारदर्शिता को बरकरार रखने के लिए यह निर्णय दिया है ताकि किसी भी पक्ष को अन्याय का सामना न करना पड़े।

प्रभावित निवासियों के अधिकार और कानून

Allahabad High Court के इस आदेश ने प्रभावित निवासियों को एक महत्वपूर्ण राहत प्रदान की है। इस आदेश के अनुसार, वे 4 नवंबर तक अपने जवाब दाखिल कर सकते हैं और इसके बाद राज्य सरकार को उनके जवाबों की समीक्षा करनी होगी। अगर उनके पास निर्माण की वैधता के सबूत हैं, तो सरकार को उन पर विचार करना होगा और एक तर्कसंगत निर्णय लेना होगा। इससे यह स्पष्ट होता है कि कानून सभी के लिए समान है और किसी भी समुदाय के खिलाफ भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए।

निष्कर्ष

Allahabad High Court का यह आदेश नागरिक अधिकारों की रक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। कोर्ट ने यह सुनिश्चित किया कि सरकार की कार्रवाई कानूनी प्रक्रियाओं का पालन करते हुए हो और किसी भी व्यक्ति या समुदाय के खिलाफ अन्याय न हो। इस मामले में कोर्ट का निर्णय सामाजिक न्याय और कानून के समक्ष समानता की दिशा में एक बड़ा कदम है।

इस प्रकार, Allahabad High Court ने एक बार फिर से यह साबित किया है कि न्यायपालिका का उद्देश्य न केवल कानून का पालन करना है, बल्कि यह सुनिश्चित करना है कि कानून के तहत सभी नागरिकों के अधिकारों की रक्षा हो।

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