किरण राव की फिल्म Laapataa Ladies को जब भारत की आधिकारिक ऑस्कर एंट्री 2025 के लिए चुना गया, तो सोशल मीडिया पर कई लोग हैरान रह गए। खासकर, पायल कपाड़िया की फिल्म ‘ऑल वी इमेजिन ऐज लाइट’ को इस सूची में शामिल न किए जाने पर चर्चा हुई, जो कान फिल्म फेस्टिवल में जीत चुकी थी। इस फैसले पर कई नेटिज़न्स ने असंतोष जताया और इसे एक ‘मौका छिनने’ जैसा बताया। 12 सदस्यीय जूरी, जिसका नेतृत्व असम के प्रसिद्ध निर्देशक जाह्नु बरुआ ने किया, ने इस निर्णय के पीछे की वजहों को हाल ही में स्पष्ट किया।
Laapataa Ladies को कैसे मिली बढ़त?
जब Laapataa Ladies को अन्य शॉर्टलिस्टेड फिल्मों पर कैसे चुना गया, इस सवाल पर जाह्नु बरुआ ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “जूरी को वह फिल्म देखनी होती है जो हर दृष्टिकोण से भारत का सही प्रतिनिधित्व करती हो। खासकर, फिल्म को भारत की सामाजिक संरचनाओं और भारतीयता को दर्शाना चाहिए। Laapataa Ladies इस मोर्चे पर सबसे ज्यादा अंक लेकर आई।”
उन्होंने आगे कहा, “यह बहुत महत्वपूर्ण है कि सबसे उपयुक्त फिल्म को भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए ऑस्कर के लिए भेजा जाए। हो सकता है कि इससे भी अच्छी फिल्म हो, जो नामांकित 29 फिल्मों में शामिल न हो, लेकिन जूरी को केवल उन फिल्मों में से चुनाव करना होता है, जो उन्हें दी गई हैं।”
निर्णय प्रक्रिया कितनी लंबी चली?
जूरी की निर्णय प्रक्रिया कितनी लंबी चली, इस पर जाह्नु बरुआ ने बताया, “हम चेन्नई में 7-8 दिनों तक थे और हमें जो 29 फिल्में भेजी गईं, उन्हें देख रहे थे। इस पूरे समय के दौरान, हम फिल्मों पर गहराई से चर्चा करते रहे। हर जूरी सदस्य की मजबूत राय थी और हमने बातचीत जारी रखी। हम निरंतर फिल्में देख रहे थे, उनकी समीक्षा कर रहे थे, उन्हें शॉर्टलिस्ट कर रहे थे और अंत में एक नाम पर सहमति बनाई। अंतिम निर्णय तक पहुंचने में आधे दिन का समय लगा, क्योंकि हम लगातार फिल्मों के बारे में बातचीत कर रहे थे।”
यह निर्णय प्रक्रिया केवल एक दिन में नहीं बल्कि कई दिनों की बातचीत और फिल्मों की गहन समीक्षा के बाद की गई थी। उन्होंने कहा, “यह एक उत्साहपूर्ण और जुनूनी अनुभव था। यह ऐसा कुछ है जो हर किसी के साथ नहीं होता, और इसने मुझे बहुत खुशी दी। जूरी में शामिल हर व्यक्ति भारतीय सिनेमा के प्रति अपने प्रेम के कारण इसका हिस्सा था।”
केवल 29 फिल्में ही क्यों शॉर्टलिस्ट की गईं?
जब पूछा गया कि केवल 29 फिल्में ही शॉर्टलिस्ट क्यों की गईं, तो जाह्नु बरुआ ने कहा, “यह वह चीज़ है जिसे हमें सुधारने की जरूरत है। हमें एक ऐसा सिस्टम बनाना चाहिए जो भारतीय सिनेमा से आने वाली फिल्मों के साथ न्याय कर सके। क्या हमें सबसे अच्छी संभव फिल्म नहीं भेजनी चाहिए?”
उन्होंने यह भी बताया कि उन्हें इस जिम्मेदारी को संभालते समय कोई दबाव महसूस नहीं हुआ। “बिल्कुल नहीं। असल में, सब कुछ जूरी सदस्यों पर निर्भर करता है। हमें एक सख्त दृष्टिकोण अपनाना पड़ता है और यह सुनिश्चित करना होता है कि चयन प्रक्रिया में कोई बाहरी प्रभाव न हो। हर सदस्य को अपने दिमाग का इस्तेमाल करके सबसे अच्छी फिल्म का चयन करना होता है। यह जूरी के नेतृत्व पर भी निर्भर करता है, और मैंने कभी भी अपनी जूरी में किसी प्रकार का हस्तक्षेप या प्रभाव नहीं होने दिया।”
जूरी की निष्पक्षता पर जोर
बरुआ ने जूरी की निष्पक्षता और स्वायत्तता पर जोर देते हुए कहा कि उन्हें कोई भी बाहरी दबाव महसूस नहीं हुआ और उन्होंने इस प्रक्रिया में अपनी टीम को किसी भी प्रकार के प्रभाव से बचाकर रखा। “हम सभी ने सुनिश्चित किया कि फिल्म का चयन पूरी तरह से निष्पक्ष हो। हर जूरी सदस्य ने अपनी राय दी, और अंततः हम सभी ने Laapataa Ladies को चुनने का निर्णय किया।”
‘ऑल वी इमेजिन ऐज लाइट’ को लेकर विवाद
Laapataa Ladies पायल कपाड़िया की ‘ऑल वी इमेजिन ऐज लाइट’ ने कान फिल्म फेस्टिवल में जीत हासिल की थी, जिसके बाद उम्मीद की जा रही थी कि इसे भारत की ऑस्कर एंट्री के लिए भी नामांकित किया जाएगा। हालांकि, इसे न चुनने के फैसले पर कई लोग असंतुष्ट थे और इसे ‘अन्याय’ कहा जा रहा था। इस पर बरुआ ने बताया कि जूरी के पास जो फिल्में थीं, उनमें से सबसे अच्छी फिल्म का चुनाव करना उनका कर्तव्य था। हो सकता है कि इससे भी बेहतर फिल्में हों, लेकिन जूरी के पास केवल उन्हीं फिल्मों में से चयन करने का विकल्प था, जो उन्हें दी गई थीं।
ऑस्कर के लिए भारत का सही प्रतिनिधित्व
बरुआ ने बताया कि जब ऑस्कर के लिए भारत का प्रतिनिधित्व करने वाली फिल्म का चयन किया जाता है, तो यह देखना जरूरी है कि वह फिल्म भारत की संस्कृति, सामाजिक ताने-बाने और भारतीयता को कितनी सशक्त तरीके से प्रस्तुत करती है। Laapataa Ladies ने इस मामले में सभी प्रमुख बिंदुओं पर खरा उतरा, और इसीलिए इसे भारत की आधिकारिक एंट्री के रूप में चुना गया।
निष्कर्ष
किरण राव की Laapataa Ladies का भारत की ऑस्कर एंट्री के रूप में चयन एक गहन और विचारशील प्रक्रिया का परिणाम था। जाह्नु बरुआ और उनकी जूरी ने यह सुनिश्चित किया कि फिल्म भारत की संस्कृति और समाज का सही प्रतिनिधित्व करती हो। हालांकि, ‘ऑल वी इमेजिन ऐज लाइट’ को न चुनने पर विवाद उठा, लेकिन बरुआ ने स्पष्ट किया कि जूरी के पास जो फिल्में थीं, उनमें से सबसे उपयुक्त फिल्म को चुनने का निर्णय लिया गया।
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