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ToggleJammu Kashmir और हरियाणा के चुनावी समर का ऐलान
Jammu Kashmir और हरियाणा के राजनीतिक परिदृश्य में आज एक महत्वपूर्ण दिन है, क्योंकि इन दोनों राज्यों में विधानसभा चुनावों की तारीखों का ऐलान किया जाएगा। Jammu Kashmir के लिए यह चुनाव खास तौर पर ऐतिहासिक माना जा रहा है क्योंकि यह धारा 370 हटाए जाने के बाद यहां का पहला विधानसभा चुनाव होगा।
धारा 370 के बाद Jammu Kashmir की नई राजनीतिक तस्वीर
धारा 370 को हटाए जाने के बाद, Jammu Kashmir का विशेष दर्जा समाप्त कर दिया गया था और इसे केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया गया था। इसके बाद से ही यहां के राजनीतिक दल और जनता बेसब्री से चुनावों का इंतजार कर रहे थे, ताकि वे अपनी सरकार चुन सकें और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में भाग ले सकें।
Jammu Kashmir और लद्दाख का विभाजन
केंद्र सरकार ने धारा 370 को हटाने के साथ ही राज्य को दो हिस्सों में बांट दिया था Jammu Kashmir और लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया, जबकि जम्मू-कश्मीर को विशेष रूप से विधानसभा चुनाव कराने की योजना बनाई गई थी। आज की घोषणा के साथ, राज्य की जनता को फिर से अपने जनप्रतिनिधियों को चुनने का अवसर मिलेगा।
हरियाणा की चुनावी तैयारियां
हरियाणा की बात करें तो यहां विधानसभा की कुल 90 सीटें हैं, जिनमें से वर्तमान में तीन सीटें खाली हैं। बीजेपी के पास 41 विधायक हैं, जबकि कांग्रेस के 29, JJP के 10, और INLD और HLP के एक-एक विधायक हैं। इसके अलावा सदन में पांच निर्दलीय विधायक भी शामिल हैं। 2019 के हरियाणा विधानसभा चुनावों में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी, और उसने 40 सीटें जीती थीं, जबकि कांग्रेस को 31 सीटों पर संतोष करना पड़ा था। बीजेपी ने बाद में जेजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाई थी।
भाजपा की चुनौतियाँ: क्या इस बार होगा बदलाव?
हरियाणा में पिछली बार के चुनावों में भाजपा ने शानदार जीत हासिल की थी, लेकिन इस बार पार्टी को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। किसान आंदोलन, बेरोजगारी, और अन्य सामाजिक मुद्दों को लेकर यहां की जनता में एक अलग ही प्रकार की चिंता है, जिसे लेकर राजनीतिक दल अपनी रणनीतियां तैयार कर रहे हैं।
राजनीतिक तापमान में इज़ाफ़ा
इन दोनों राज्यों में चुनाव की तारीखों की घोषणा के साथ ही राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो जाएंगी। सभी दल अपनी-अपनी रणनीतियों के साथ जनता के बीच पहुंचने की तैयारी में जुट जाएंगे। जम्मू-कश्मीर में जहां धारा 370 के बाद के हालात और नए राजनीतिक समीकरण चुनावों को प्रभावित करेंगे, वहीं हरियाणा में पारंपरिक मुद्दे और वर्तमान सरकार के प्रदर्शन को लेकर चुनावी माहौल गर्म रहेगा।
भविष्य का फैसला: किसके हाथ में होगी बागडोर?
आगामी चुनाव न केवल इन राज्यों की राजनीति को नया रूप देंगे, बल्कि पूरे देश की नजरें इन पर टिकी रहेंगी। यह देखना दिलचस्प होगा कि जनता किसे अपना जनप्रतिनिधि चुनती है और किस दिशा में इन राज्यों का भविष्य तय होता है।
Jammu Kashmir में चुनाव की मांग और सुरक्षा चुनौतियां
Jammu Kashmir में धारा 370 के हटाए जाने के बाद से लगातार विधानसभा चुनावों की मांग की जा रही थी। 2019 में धारा 370 खत्म होने के बाद Jammu Kashmir को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया गया था, और तब से ही वहां के राजनीतिक दल राज्य का दर्जा वापस पाने की मांग कर रहे थे। सरकार का कहना था कि पहले चुनाव होंगे और उसके बाद ही राज्य का दर्जा बहाल किया जाएगा। चुनाव आयोग के लिए जम्मू-कश्मीर में चुनाव संपन्न कराना एक बड़ी चुनौती है, खासकर सुरक्षा व्यवस्था के लिहाज से।
परिसीमन और नई विधानसभा सीटें
जम्मू-कश्मीर में कुल 90 सीटों पर चुनाव होंगे, जिसमें जम्मू क्षेत्र में 43 और कश्मीर क्षेत्र में 47 सीटें शामिल हैं। 2014 में हुए चुनावों में 87 सीटों पर चुनाव हुआ था, जिसमें जम्मू की 37 और कश्मीर की 46 सीटें शामिल थीं। परिसीमन के बाद अब यह संख्या बढ़कर 90 हो गई है।
राजनीतिक सरगर्मियों का बढ़ता तापमान
आगामी विधानसभा चुनावों को लेकर जम्मू-कश्मीर और हरियाणा में राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गई हैं, और यह देखना दिलचस्प होगा कि चुनावी नतीजे किस ओर रुख करते हैं। इन चुनावों के परिणाम न केवल इन राज्यों की राजनीति को प्रभावित करेंगे, बल्कि देश की राजनीति पर भी इसका व्यापक असर पड़ सकता है।