राहुल गांधी की सांसद के रूप में वापसी हो गई है:। अब वो ‘सत्ता का मारा पीड़ित’ नहीं रह गए। ऐसे में कांग्रेस पार्टी को यह तय करना होगा कि राहुल गांधी को विपक्ष का चेहरा बनाने पर जोर देना है या नहीं। क्योंकि राहुल को आगे बढ़ाने का असर विपक्षी एकजुटता की कोशिशों पर पड़ सकता है। सात जुलाई को गुजरात हाई कोर्ट में राहुल गांधी ने सूरत मेट्रोपॉलिटन कोर्ट के फ़ैसले को चुनौती दी थी लेकिन हाई कोर्ट ने निचली अदालत के फ़ैसले को बरकरार रखा था. इसके बाद राहुल गांधी सुप्रीम कोर्ट गए थे और वहाँ उन्हें राहत मिली.</शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट : ने आपराधिक मानहानि केस में राहुल गांधी को दोषी ठहराए जाने के फ़ैसले को रोक दिया था. सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले की कॉपी का अध्ययन करने के बाद लोकसभा सचिवालय ने यह फ़ैसला लिया है. राहुल गांधी केरल के वायनाड से लोकसभा सांसद हैं. इसी साल 24 मार्च को गुजरात में सूरत के मेट्रोपॉलिटन कोर्ट ने राहुल गांधी को मोदी सरनेम मानहानि केस में दो साल की सज़ा सुनाई थी.
राहुल गांधी 2004 से लोकसभा सांसद हैं. राहुल गांधी की सदस्यता तब बहाल हुई है, जब कांग्रेस की अगुआई में कई विपक्षी दलों ने संसद में अविश्वास प्रस्ताव पेश किया है.अविश्वास प्रस्ताव पर इसी हफ़्ते लोकसभा में बहस होनी है. ऐसे में राहुल गांधी भी इस बहस में हिस्सा ले सकेंगे. इससे पहले सात फ़रवरी को राहुल गांधी राष्ट्रपति के अभिभाषण पर बहस में शामिल हुए थे. राहुल गांधी की अयोग्यता से विपक्षी खेमे में गम और खुशी, दोनों का साथ-साथ संचार हुआ। एक तरफ विपक्षी नेताओं को लगने लगा कि राहुल नपे तो अगली बारी किसी और की भी हो सकती है। दूसरी तरफ, उन्होंने यह सोचकर राहत की सांस ली कि चलो अब राहुल गांधी से छुटकारा मिला, वो अब प्रधानमंत्री पद की रेस से बाहर हो गए। अरविंद केजरीवाल, ममता बनर्जी और नीतीश कुमार जैसे नेताओं की तो बांछें ही खिल गई होंगी
शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद कांग्रेस मांग कर रही थी कि जितनी तेज़ी राहुल गांधी की सदस्यता लेने में दिखाई गई थी, उतनी ही तेज़ी सदस्यता बहाल करने में भी दिखानी चाहिए. लेकिन लोकसभा के अधिकारियों ने बताया है कि वीकेंड में छुट्टी रहती है, इसलिए सोमवार को ही काम हो सकता था. राहुल गांधी की रीब्रैंडिंग की पहले भी बहुत कोशिशें हो चुकीं, लेकिन इस बार पिछले प्रयासों के मुकाबले ज्यादा सफलता मिली है। इस बार न केवल कांग्रेस बल्कि विपक्षी गठबंधन में भी राहुल की स्वीकार्यता बढ़ी है। कई कांग्रेस समर्थकों को लगता है कि नई छवि गढ़ चुके राहुल गांधी के लिए अब तीसरा और आखिरी मोर्चे का मंच तैयार हो गया है और वो है- प्रधानमंत्री पद के लिए नरेंद्र मोदी से दो-दो हाथ करना। लेकिन इस सवाल पर कांग्रेस अभी भी खुद को उहापोह में फंसी पाती है। अगले वर्ष 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों के लिए कांग्रेस पार्टी की रणनीति दो परस्पर विरोधी लक्ष्यों पर आधारित है। एक तरफ तो वह व्यापक विपक्षी एकता चाहती है, लेकिन दूसरी तरफ उसे अपनी खोई हुई जमीन भी वापस चाहिए जो उसने गठबंधन सहयोगियों के हाथ गंवाए हैं।