Kerala High Court: में दहेज निषेध कानून पर सुनवाई: राज्य सरकार की रिपोर्ट
Kerala High Court: में दहेज निषेध कानून पर एक महत्वपूर्ण मामले की सुनवाई चल रही है। राज्य सरकार ने अदालत को सूचित किया कि महिला एवं बाल विकास विभाग (WCD) ने एक नया पोर्टल शुरू किया है, जिसके माध्यम से दहेज उत्पीड़न से पीड़ित व्यक्ति सीधे अदालत में अपनी शिकायतें दर्ज कर सकते हैं। इसके अलावा, दहेज निषेध अधिनियम से संबंधित मामलों को निपटाने के लिए एक मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) भी तैयार की जा रही है।
यह सब उस जनहित याचिका (PIL) के तहत हुआ है, जिसे एर्नाकुलम निवासी टेलमी जोली ने दायर किया था। उन्होंने Kerala High Court में दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी थी, क्योंकि इस धारा के तहत दहेज देने वालों को दंडित किया जाता है। उनका कहना था कि दहेज देने वाले व्यक्ति—जो अक्सर पीड़ित या उनके परिवार के सदस्य होते हैं—को दंडित करना, दहेज से संबंधित उत्पीड़न की रिपोर्टिंग के खिलाफ एक बड़ा डर बन जाता है, क्योंकि इस दंड के कारण वे स्वयं को अपराधी मान सकते हैं और रिपोर्ट करने से कतराते हैं।
केरल सरकार का कदम और हाई कोर्ट की सुनवाई
राज्य सरकार ने अदालत में एक हलफनामा दाखिल किया, जिसमें बताया गया कि सरकार ने इस समस्या को हल करने के लिए विभिन्न कदम उठाए हैं। हलफनामे में कहा गया कि सरकार ने जिले स्तर पर दहेज निषेध अधिकारी नियुक्त किए हैं। महिला और बाल विकास विभाग के निदेशक को मुख्य दहेज निषेध अधिकारी के रूप में नियुक्त किया गया है, जो दहेज निषेध संबंधित गतिविधियों का संचालन और समन्वय करेंगे। यह सभी कदम Kerala High Court के निर्देशों के तहत उठाए जा रहे हैं।
राज्य सरकार ने यह भी स्पष्ट किया कि वह दहेज लेने और देने की इस कुरीति को समाप्त करने के लिए सच्चे प्रयास कर रही है। सरकार का उद्देश्य दहेज देने और लेने की प्रथा को पूरी तरह से समाप्त करना है, ताकि समाज में महिलाओं के खिलाफ होने वाले उत्पीड़न को कम किया जा सके।
PIL का मुद्दा: दहेज देने वाले को दंडित करना
Kerala High Court में दायर जनहित याचिका के तहत, टेलमी जोली ने यह सवाल उठाया था कि दहेज देने को दंडनीय क्यों बनाया गया है। उनका मानना था कि यह उन पीड़ितों और उनके परिवारों के लिए अन्यायपूर्ण है, जो दहेज उत्पीड़न के शिकार होते हैं। उनका तर्क था कि दहेज देने वाले व्यक्ति, जो अक्सर परिवार के सदस्य होते हैं, उन्हें दंडित करना, मामले को छुपाने या रिपोर्ट करने से हतोत्साहित कर सकता है।
यह मामला संवैधानिक वैधता से जुड़ा हुआ था, क्योंकि यह सीधे तौर पर महिलाओं के अधिकारों और उनके संरक्षण से संबंधित था। टेलमी जोली ने तर्क दिया कि दहेज देने वाले को दंडित करना महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन कर सकता है और यह कानून को कमजोर करता है।
केरल सरकार का हलफनामा और कदम
राज्य सरकार ने हलफनामे में यह भी बताया कि सरकार दहेज निषेध के लिए जिलों में अधिकारियों की नियुक्ति कर चुकी है और दहेज से संबंधित उत्पीड़न की रोकथाम के लिए विभिन्न उपायों की योजना बनाई जा रही है। सरकार ने यह स्पष्ट किया कि महिला और बाल विकास विभाग के निदेशक को मुख्य दहेज निषेध अधिकारी के रूप में नियुक्त किया गया है और उनके नेतृत्व में दहेज निषेध को लेकर राज्य में बड़े बदलाव किए जा रहे हैं।
यह कदम ऐसे समय में उठाया जा रहा है जब सरकार ने दहेज निषेध कानून के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए पूरी तरह से समर्पित योजना बनाई है।
सुनवाई और अदालत की कार्रवाई
इस मामले की सुनवाई के दौरान Kerala High Courtने सरकार द्वारा दिए गए हलफनामे और अधिकारियों के नियुक्ति पर विचार किया। कोर्ट ने सरकार से यह भी अपेक्षा की कि वह दहेज निषेध अधिनियम की प्रभावी कार्यान्वयन के लिए अपने कदम और योजना पर जल्द से जल्द प्रगति रिपोर्ट दे।
फिलहाल, यह मामला आगामी 16 सितंबर को फिर से सुना जाएगा, क्योंकि केंद्र सरकार की ओर से दायर किए जाने वाले काउंटर हलफनामे में कुछ समय और लिया जा सकता है।
दहेज निषेध का भविष्य और इससे संबंधित उपाय
Kerala High Court में दहेज निषेध कानून से संबंधित यह केस समाज में एक बड़े बदलाव की संभावना को जन्म दे रहा है। जहां एक ओर Kerala High Court सरकार से यह सुनिश्चित करने की उम्मीद कर रहा है कि दहेज के खिलाफ कड़े कदम उठाए जाएं, वहीं दूसरी ओर यह भी सुनिश्चित करना जरूरी है कि दहेज देने वालों को दंडित करने से पीड़ितों को और भी समस्याओं का सामना न करना पड़े।
राज्य सरकार के हलफनामे में यह भी उल्लेख किया गया है कि दहेज देने और लेने को पूरी तरह से निषिद्ध किया जाएगा और इसके खिलाफ सख्त कानूनी प्रावधान बनाए जाएंगे। राज्य में दहेज से संबंधित अपराधों की संख्या को कम करने के लिए सरकार का यह कदम बहुत महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।
निष्कर्ष
Kerala High Court में दहेज निषेध कानून से संबंधित मामला इस समय समाज में चर्चा का विषय बन गया है। जहां सरकार अपने हलफनामे में यह स्पष्ट करती है कि वह दहेज निषेध कानून को प्रभावी बनाने के लिए समर्पित है, वहीं अदालत से उम्मीद की जा रही है कि वह दहेज देने वाले को दंडित करने की धारा पर पुनः विचार करेगी। यह मामला समाज में दहेज के खिलाफ उठाए जाने वाले कदमों को और प्रभावी बनाने में सहायक हो सकता है।
इस मुद्दे पर केरल हाई कोर्ट की सुनवाई के दौरान सरकार की कार्रवाई और अदालत का निर्णय समाज में दहेज निषेध के अधिकारों को सुनिश्चित करने में अहम भूमिका निभा सकता है। अब यह देखना होगा कि अगले सुनवाई में इस पर क्या निर्णय लिया जाता है।
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