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Ram Rahim: 4 साल में 11 बार पैरोल, हर बार चुनावी कनेक्शन?

Ram Rahim

रेप और हत्या के मामलों में सजायाफ्ता डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत  Ram Rahim एक बार फिर से सुर्खियों में हैं। हरियाणा में विधानसभा चुनावों से ठीक पहले, चुनाव आयोग ने उनकी पैरोल की याचिका को शर्तों के साथ मंजूरी दे दी है। इस फैसले ने एक बार फिर से राम रहीम के प्रभाव और उसके द्वारा राजनीतिक परिदृश्य पर डाले गए असर की चर्चा को हवा दे दी है। खासतौर पर तब जब हरियाणा में चुनावी माहौल गरमाया हुआ है।

पैरोल का समय और शर्तें

गुरमीत Ram Rahim ने जेल विभाग को 20 दिन की इमरजेंसी पैरोल की याचिका दी थी, जिसमें उसने कहा था कि वह इस अवधि के दौरान उत्तर प्रदेश के बरनावा आश्रम में रहेगा। चुनाव आयोग ने इस याचिका को शर्तों के साथ मंजूरी दी है, जिसमें एक महत्वपूर्ण शर्त यह है कि Ram Rahim हरियाणा में दाखिल नहीं हो सकता। साथ ही, उसे किसी भी प्रकार की राजनीतिक गतिविधि में हिस्सा लेने की अनुमति नहीं होगी। वह सोशल मीडिया पर भी किसी प्रकार का चुनाव प्रचार नहीं कर सकेगा।

चुनाव से ठीक पहले पैरोल: एक पैटर्न

गुरमीत Ram Rahim को पिछले चार सालों में 11 बार पैरोल या फरलो मिली है, जिनमें से 8 बार उसे ठीक चुनाव से पहले ये रियायत दी गई है। इससे एक पैटर्न का संकेत मिलता है कि चुनावों के दौरान Ram Rahim को अक्सर जेल से बाहर आने की अनुमति दी जाती है। यह पैरोल और फरलो हर बार तब आती है जब किसी महत्वपूर्ण चुनाव की तारीख नजदीक होती है, जिससे उसके राजनीतिक प्रभाव और उसके अनुयायियों पर इसका असर साफ दिखाई देता है।

पैरोल के पीछे का राजनीतिक कनेक्शन

Ram Rahim के अनुयायी, जो कि बड़ी संख्या में वोटर भी हैं, चुनावों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। हरियाणा और पंजाब में डेरा सच्चा सौदा का बड़ा वोट बैंक है, खासकर हरियाणा के सिरसा, कुरुक्षेत्र, और कैथल जैसे इलाकों में। पिछले लोकसभा चुनाव में डेरा सच्चा सौदा ने खुलकर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का समर्थन किया था। डेरा ने एक 15 सदस्यीय कमेटी भी बनाई थी, जिसका कार्य चुनाव प्रचार में सहायता करना था। डेरा प्रमुख के इस राजनीतिक प्रभाव को देखते हुए, उसे बार-बार पैरोल या फरलो देना एक गहरी राजनीतिक चाल मानी जा सकती है।

जेल से बाहर आने के बार-बार मौके

गुरमीत Ram Rahim 2 सितंबर को 21 दिन की फरलो पूरी करने के बाद जेल में वापस आया था। इससे पहले भी, उसे कई बार पैरोल और फरलो दी गई थी। नवंबर 2023 में जब राजस्थान में विधानसभा चुनाव हो रहे थे, तब उसे 21 दिन की फरलो मिली थी। इसी तरह, जनवरी 2024 में लोकसभा चुनावों से ठीक पहले, उसे 50 दिनों के लिए पैरोल पर रिहा किया गया था। अब, हरियाणा विधानसभा चुनावों से ठीक पांच दिन पहले उसे फिर से पैरोल दी गई है।

आलोचना और विवाद

Ram Rahim को बार-बार मिल रही पैरोल और फरलो पर सवाल खड़े हो रहे हैं। कई आलोचकों का कहना है कि यह पैरोल का दुरुपयोग है और इसे सजा का मजाक बना दिया गया है। खासतौर पर तब जब राम रहीम को रेप और हत्या जैसे गंभीर अपराधों के लिए सजा दी गई है। पत्रकार रामचंद्र छत्रपति के बेटे अंशुल छत्रपति ने राम रहीम की पैरोल के खिलाफ मुख्य चुनाव आयुक्त को पत्र भेजा है। उनके अनुसार, इमरजेंसी पैरोल केवल विशेष परिस्थितियों में दी जानी चाहिए, लेकिन राम रहीम के आवेदन में ऐसी कोई विशेष स्थिति का जिक्र नहीं है। उन्होंने मांग की है कि राम रहीम की पैरोल को रद्द किया जाना चाहिए।

पैरोल और फरलो की सूची

Ram Rahim को पैरोल और फरलो मिलने का सिलसिला लंबे समय से चला आ रहा है।

Ram Rahim की सजा

गुरमीत Ram Rahim को 2017 में दो महिलाओं से बलात्कार के मामले में 20 साल की सजा सुनाई गई थी। इसके अलावा, उसे 2019 में पत्रकार रामचंद्र छत्रपति की हत्या के मामले में भी दोषी ठहराया गया था। Ram Rahim इस समय हरियाणा के रोहतक जिले की सुनारिया जेल में बंद है। हालांकि, इन गंभीर आरोपों के बावजूद, उसे बार-बार पैरोल और फरलो मिलती रही है, जो न्यायिक प्रक्रिया पर सवाल उठाती है।

डेरा सच्चा सौदा का राजनीतिक प्रभाव

गुरमीत राम रहीम के डेरा सच्चा सौदा का राजनीतिक प्रभाव लंबे समय से बना हुआ है। उसने राजनीतिक निर्णय लेने के लिए एक राजनीतिक विंग बनाई है, जो चुनावों में पार्टियों का समर्थन करती है। डेरा ने अब तक कांग्रेस, शिरोमणि अकाली दल (एसएडी), और बीजेपी का समर्थन किया है। गुरमीत का राजनीतिक समर्थन हर चुनाव में महत्वपूर्ण माना जाता है, खासकर हरियाणा और पंजाब में।

निष्कर्ष

गुरमीत राम रहीम की पैरोल का यह नया प्रकरण एक बार फिर से दर्शाता है कि कैसे राजनीति और धर्म का गठजोड़ चुनावों में प्रभाव डालता है। बार-बार मिल रही पैरोल और फरलो ने न्यायिक प्रक्रिया पर सवाल खड़े किए हैं। खासकर चुनावों के समय पर मिल रही रियायतें दर्शाती हैं कि किस तरह से राजनीतिक फायदा उठाने के लिए धर्मगुरुओं का इस्तेमाल किया जाता है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि हरियाणा के आगामी चुनावों में राम रहीम की यह पैरोल क्या राजनीतिक प्रभाव डालती है।

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