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Jammu Result: कांग्रेस खाली हाथ, BJP ने जीतीं 10 सीटें

Jammu Result

Jammu Result: जम्मू-कश्मीर में हाल ही में संपन्न हुए चुनावों में एक बार फिर से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने बड़ी जीत दर्ज की है, जबकि कांग्रेस को एक भी सीट पर सफलता नहीं मिल सकी। भाजपा ने 11 में से 10 सीटों पर जीत दर्ज की है, जबकि कांग्रेस को पुराने चेहरों के कारण करारी हार का सामना करना पड़ा है। इस चुनाव परिणाम के बाद जम्मू के राजनीतिक परिदृश्य में भाजपा की पकड़ और मजबूत हो गई है, जबकि कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस (नेकां) जैसी प्रमुख पार्टियों को अपने प्रदर्शन पर गंभीरता से पुनर्विचार करने की जरूरत है। इस लेख में Jammu Result के संदर्भ में चुनाव परिणाम और प्रमुख कारणों पर विस्तृत चर्चा की जाएगी।

भाजपा का दबदबा

चुनाव में भाजपा का प्रदर्शन बेहद प्रभावी रहा है। पार्टी ने डोगरा सीएम के नारे के साथ मैदान में उतरे और सफलतापूर्वक 10 सीटों पर जीत हासिल की। खास बात यह रही कि भाजपा ने अधिकतर सीटों पर नए चेहरे उतारे थे, जिनमें राजीव कुमार (बिश्नाह), सुरिंदर कुमार (मड़), मोहन लाल (अखनूर), नरिंदर सिंह रैना (जम्मू दक्षिण), विक्रम रंधावा (बाहु), अरविंद गुप्ता (जम्मू पश्चिम), युद्धवीर सेठी (जम्मू पूर्व) शामिल थे। इन नए चेहरों ने पार्टी को बड़ी जीत दिलाई। केवल नगरोटा और जम्मू उत्तर सीट पर पुराने नेताओं देवेंद्र सिंह राणा और शाम लाल शर्मा ने जीत हासिल की, जबकि सुचेतगढ़ से गारू राम ने जीत दर्ज की।

कांग्रेस की हार

कांग्रेस पार्टी ने 2014 की हार से सबक नहीं लिया और फिर से पुराने चेहरों के साथ मैदान में उतरी। पार्टी के दिग्गज नेता तारा चंद (छंब), रमन भल्ला (आरएस पुरा जम्मू दक्षिण), मूला राम (मड़), योगेश साहनी (जम्मू पूर्व), टी एस टोनी (बाहु), अशोक कुमार (अखनूर) जैसे नेता चुनाव लड़े, लेकिन एक भी सीट जीतने में असफल रहे। Jammu Result के मुताबिक, कांग्रेस की हार का एक बड़ा कारण पुराने चेहरों पर अधिक भरोसा करना और जमीनी स्तर पर मजबूत नेतृत्व की कमी रही।

निर्दलीय उम्मीदवार की जीत

छंब विधानसभा सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार सतीश शर्मा ने जीत हासिल की, जो कांग्रेस के बागी नेता थे। टिकट न मिलने के कारण उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की। सतीश शर्मा के पिता मदन लाल दो बार के सांसद रहे थे, जिसका लाभ सतीश शर्मा को मिला। Jammu Result में यह बात साफ है कि सतीश शर्मा को स्थानीय जनता का समर्थन मिला, जबकि कांग्रेस और भाजपा के प्रत्याशी अपने समर्थकों को संतुष्ट करने में असफल रहे।

नेशनल कॉन्फ्रेंस का प्रदर्शन

नेशनल कॉन्फ्रेंस ने 2014 में दो सीटें जीती थीं, लेकिन इस बार पार्टी शून्य पर सिमट गई। पार्टी ने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया था, लेकिन यह गठबंधन सफल नहीं रहा। नगरोटा से देवेंद्र राणा और बिश्नाह से कमल अरोड़ा 2014 में जीत दर्ज करने में सफल रहे थे, लेकिन इस बार नेकां ने कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा और Jammu Result के अनुसार, दोनों ही पार्टियां हार गईं। मड़ से पूर्व मंत्री अजय सढोत्रा चुनाव हार गए, और नेकां को इस बार एक भी सीट पर जीत नहीं मिली।

प्रमुख सीटों पर मुकाबला

Jammu Result के अनुसार, कुछ प्रमुख सीटों पर कांटे की टक्कर देखने को मिली। आरएस पुरा जम्मू दक्षिण सीट पर भाजपा के नरिंदर सिंह और कांग्रेस के रमन भल्ला के बीच मुकाबला बेहद कड़ा रहा। हालांकि अंततः नरिंदर सिंह ने 1966 वोटों के अंतर से जीत दर्ज की। इसी तरह बिश्नाह सीट पर भाजपा के राजीव कुमार और कांग्रेस के नीरज कुंदन के बीच कड़ा मुकाबला रहा, लेकिन भाजपा ने अंततः जीत हासिल की।

एससी और सिख वोटरों की भूमिका

Jammu Result में भाजपा की जीत का एक बड़ा कारण एससी और सिख वोटरों का समर्थन रहा। सुचेतगढ़ और बिश्नाह जैसी सीटों पर भाजपा ने एससी वोटरों को अपने पक्ष में करने में सफलता पाई। वहीं, आरएस पुरा जम्मू दक्षिण सीट पर सिख बहुल इलाकों में सिख उम्मीदवार नरिंदर सिंह को उतारकर भाजपा ने सिख वोटरों का समर्थन हासिल किया। इस सीट पर पश्चिम पाकिस्तानी शरणार्थियों के वोट भी भाजपा के पक्ष में गए, जिसने कांग्रेस की हार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

चुनाव परिणाम का विश्लेषण

Jammu Result को देखते हुए यह स्पष्ट है कि भाजपा ने अपनी रणनीति और डोगरा सीएम के नारे के साथ मतदाताओं को आकर्षित करने में सफलता पाई। पार्टी ने नए चेहरों को मौका देकर न सिर्फ जनता का विश्वास जीता, बल्कि अपनी छवि को भी और मजबूत किया। कांग्रेस की हार का प्रमुख कारण पुराने चेहरों पर भरोसा करना और स्थानीय मुद्दों को सही ढंग से समझने में असफल रहना रहा। नेकां और कांग्रेस के गठबंधन ने भी कोई खास फायदा नहीं दिया, और पार्टी एक भी सीट नहीं जीत सकी।

Jammu Result ने यह साबित कर दिया है कि भाजपा जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक परिदृश्य में अपनी मजबूत पकड़ बनाए रखने में सफल रही है। कांग्रेस और नेकां जैसी पार्टियों को अपनी रणनीतियों पर पुनर्विचार करना होगा, खासकर उन सीटों पर जहां भाजपा का दबदबा है।

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