India Rupee Record Low: अमेरिकी डॉलर के मुकाबले नया न्यूनतम स्तर
भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले अपने अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है, जिसकी वजह विदेशी निवेशकों द्वारा भारतीय इक्विटी बाजारों में बेचवाली और डोनाल्ड ट्रंप की राष्ट्रपति जीत के बाद डॉलर की मजबूती मानी जा रही है। गुरुवार को रुपया 84.37 पर बंद हुआ, जो बुधवार के 84.28 से 0.1% कम था। इस गिरावट से India Rupee Record Low की स्थिति और गंभीर हो गई है, जिससे कई आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
विदेशी निवेशकों की बिकवाली से बढ़ा दबाव
मौजूदा India Rupee Record Low स्थिति का प्रमुख कारण विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) द्वारा भारतीय शेयर बाजारों में बेचवाली को माना जा रहा है। इन निवेशकों ने हाल के दिनों में अपनी पूंजी निकालना शुरू किया है, जिससे रुपया कमजोर हो रहा है। विश्लेषकों का मानना है कि ट्रंप की जीत के बाद अमेरिकी अर्थव्यवस्था में निवेश का रुझान बढ़ गया है, जिससे डॉलर की मांग और भी बढ़ गई है।
रुपया 84.38 तक गिरा
गुरुवार को ट्रेडिंग के दौरान रुपया 84.38 के स्तर तक गिर गया और अंततः 84.37 पर बंद हुआ। इस गिरावट ने बाजार में चिंता बढ़ा दी है कि यह India Rupee Record Low स्थिति आने वाले दिनों में और गंभीर हो सकती है। हालांकि, कई अन्य एशियाई मुद्राओं की तुलना में रुपया कुछ बेहतर प्रदर्शन कर रहा है, लेकिन डॉलर की भारी मांग ने इसके स्तर को कमजोर कर दिया है।
वेस्ट एशिया की स्थिति पर निर्भर रुपया
विश्लेषकों का मानना है कि अगर वेस्ट एशिया में स्थिति में कोई बड़ा बदलाव नहीं होता है, तो रुपया 84.10 तक वापस आ सकता है। एक फॉरेक्स सलाहकार केएन डे ने कहा कि मौजूदा गिरावट का चक्र 84.40 से 84.45 के बीच खत्म हो सकता है, और इसके बाद रुपया स्थिर हो सकता है। हालांकि, ट्रंप की नीतियों और संभावित व्यापार युद्धों के चलते भविष्य में फिर से दबाव आ सकता है।
डोनाल्ड ट्रंप की जीत से डॉलर की बढ़ती मांग
डोनाल्ड ट्रंप की जीत के बाद डॉलर में निवेश की मांग बढ़ गई है, क्योंकि इसे वैश्विक अस्थिरता के समय सुरक्षित माना जाता है। ट्रंप की नीतियों से डॉलर की मांग में और वृद्धि होने की संभावना है। डॉलर इंडेक्स भी चार महीने के उच्च स्तर के करीब पहुंच गया है। ट्रंप की प्रस्तावित नीतियों में टैरिफ बढ़ोतरी और आप्रवासन प्रतिबंध शामिल हैं, जो अमेरिकी मुद्रास्फीति को बढ़ा सकते हैं। इन नीतियों की अटकलों ने निवेशकों के बीच “ट्रंप ट्रेड” के रूप में लोकप्रियता हासिल की है।
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) का हस्तक्षेप
India Rupee Record Low RBI ने रुपये की गिरावट को नियंत्रित करने के लिए मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप किया है। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि भारतीय रिजर्व बैंक सावधानी से हस्तक्षेप कर रहा है ताकि अन्य उभरते बाजारों के साथ संतुलन बना रहे। यह कदम भारत के विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव बढ़ा सकता है, लेकिन इसने रुपया को अत्यधिक अस्थिरता से बचाया है।
कमजोर रुपये का असर
India Rupee Record Low स्थिति का असर आयातकों पर पड़ेगा, क्योंकि उन्हें डॉलर में अधिक खर्च करना पड़ेगा। हालांकि, ट्रैवल और एजुकेशन क्षेत्र में इस गिरावट का ज्यादा असर नहीं देखा जा रहा है। कुछ ट्रैवल कंपनियों का मानना है कि दिसंबर की यात्रा के लिए अभी भी मजबूत मांग है। ईबिक्सकैश वर्ल्ड मनी के कार्यकारी निदेशक एम. हरिप्रसाद का कहना है कि रुपया गिरने से यात्रा और शिक्षा में कोई बड़ी गिरावट नहीं आएगी।
वॉल स्ट्रीट पर “ट्रंप ट्रेड” का प्रभाव
ट्रंप की नीतियों की अटकलों के चलते वॉल स्ट्रीट पर “ट्रंप ट्रेड” का प्रभाव देखा जा रहा है। डॉलर इंडेक्स में पिछले दो सालों में सबसे बड़ी एकल-दिवसीय वृद्धि देखी गई है, और इसने अन्य मुद्राओं के मुकाबले अपनी स्थिति मजबूत की है। डॉलर की बढ़ती मांग और मजबूत निवेश प्रवाह ने इसे एक स्थिर मुद्रा बना दिया है, जिससे रुपया जैसे उभरते बाजारों की मुद्राएं कमजोर होती जा रही हैं।
आगे की संभावनाएं
फॉरेक्स विशेषज्ञों का मानना है कि India Rupee Record Low स्थिति कुछ समय तक बनी रह सकती है। ट्रंप की आर्थिक नीतियां, खासकर उनकी व्यापार संबंधी नीतियां और इमिग्रेशन पर सख्ती का असर वैश्विक बाजार पर पड़ सकता है। हालांकि, वेस्ट एशिया में स्थिरता के संकेत मिलने पर रुपये में कुछ सुधार हो सकता है। अगर RBI अधिक हस्तक्षेप नहीं करता और वैश्विक बाजारों में सकारात्मकता आती है, तो रुपया धीरे-धीरे सुधार कर सकता है।
निष्कर्ष
भारतीय रुपया अपने निचले स्तर पर पहुंच गया है, जो India Rupee Record Low का संकेत देता है। यह स्थिति विदेशी निवेशकों द्वारा भारतीय बाजारों में बिकवाली और डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों के कारण उत्पन्न हुई है। हालांकि, भविष्य में सुधार की संभावना है, लेकिन यह वेस्ट एशिया की स्थिति और वैश्विक आर्थिक कारकों पर निर्भर करेगा। भारतीय रिजर्व बैंक के पास विकल्प है कि वह हस्तक्षेप कर बाजार में स्थिरता लाए, परंतु सतर्कता भी बनाए रखना आवश्यक है।
भारत में कमजोर रुपये के चलते आयात महंगा हो सकता है, लेकिन यह निर्यात को समर्थन भी दे सकता है। ऐसे में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि आने वाले दिनों में वैश्विक बाजार और भारत सरकार की नीतियों का इस India Rupee Record Low स्थिति पर कैसा प्रभाव पड़ता है।
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