Minister Rajnath Singh ने रविवार को एक बड़ी जानकारी दी कि सितंबर 2016 में चार विपक्षी सांसदों ने कश्मीर में हुर्रियत कांफ्रेंस के नेताओं से शांति वार्ता के लिए संपर्क किया था, लेकिन उन्हें मना कर दिया गया था। यह पहली बार है जब केंद्र सरकार ने इस तरह के प्रयासों को स्वीकार किया है, जो उस समय आतंकवादी कमांडर बुरहान वानी की मौत के बाद कश्मीर में अशांति के दौरान किए गए थे।
नई दिल्ली में एक चुनावी रैली के दौरान, Minister Rajnath Singh ने जम्मू के रामबन विधानसभा क्षेत्र में लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि यह प्रयास केंद्र सरकार की ओर से शांति वार्ता शुरू करने के उद्देश्य से किया गया था। उस समय वह गृह मंत्री थे और जम्मू-कश्मीर की तत्कालीन मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती से बातचीत की थी। सिंह ने महबूबा को आश्वासन दिया था कि कश्मीर में स्थिति सामान्य हो जाएगी।
हुर्रियत नेताओं से संपर्क का प्रयास
Minister Rajnath Singh ने बताया कि उस समय उन्होंने विपक्षी नेताओं, जैसे जेडीयू के शरद यादव और वामपंथी दलों के प्रतिनिधियों से सुझाव दिया कि वे हुर्रियत नेताओं से वार्ता करें, क्योंकि भाजपा के प्रति उनका रुख काफी कठोर था। विपक्षी नेताओं ने हुर्रियत से मिलने का प्रयास किया, लेकिन उन्हें दरवाजे से वापस लौटा दिया गया। शरद यादव और वामपंथी नेता हुर्रियत नेताओं के दरवाजे पर करीब 10 मिनट तक इंतजार करते रहे, लेकिन उन्हें अंदर नहीं बुलाया गया।
सिंह ने यह भी कहा कि Minister Rajnath Singh ने हुर्रियत नेताओं से कहा था कि बातचीत के लिए वे तैयार हैं, लेकिन कश्मीर में शांति जरूरी है। लेकिन हुर्रियत नेताओं ने संवाद करने से इनकार कर दिया, जिससे सरकार के प्रयास विफल हो गए।
कश्मीरी युवाओं पर केस और शांति प्रयास
Minister Rajnath Singh ने अपने भाषण में यह भी बताया कि उस समय कश्मीरी युवाओं के खिलाफ पत्थरबाजी के मामले दर्ज किए गए थे। उन्होंने कहा कि लोगों की बार-बार मांग थी कि निर्दोष और नाबालिग बच्चों के खिलाफ मामलों को वापस लिया जाए। सिंह ने महबूबा मुफ्ती से बात की और आग्रह किया कि उन बच्चों को रिहा किया जाए। सरकार ने उनकी रिहाई के लिए हर संभव प्रयास किया, लेकिन Minister Rajnath Singhने कहा कि जिस तरह से हुर्रियत नेताओं को प्रतिक्रिया देनी चाहिए थी, वैसी नहीं मिली।
केंद्र सरकार की शांति वार्ता की पहली स्वीकृति
यह पहली बार है जब केंद्र सरकार ने सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया है कि 2016 में कश्मीर में अशांति के दौरान हुर्रियत नेताओं से वार्ता के प्रयास किए गए थे। बुरहान वानी की मौत के बाद व्यापक विरोध-प्रदर्शन और हिंसा हुई थी, जिसमें 72 लोगों की जान गई थी। सरकार ने उस समय कठोर रुख अपनाया था, लेकिन इस वार्ता की पहल ने दिखाया कि सरकार ने बातचीत के जरिए समाधान तलाशने की भी कोशिश की थी।
Minister Rajnath Singh ने कहा कि यह हुर्रियत नेताओं द्वारा कश्मीरियत, इंसानियत, और जम्हूरियत के सिद्धांतों का उल्लंघन था। उन्होंने कहा कि जब कोई बातचीत के लिए आता है और उसे मना कर दिया जाता है, तो इसे लोकतांत्रिक प्रक्रिया नहीं कहा जा सकता।
विपक्षी सांसदों की हुर्रियत नेताओं से मुलाकात
2016 में, एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल जम्मू-कश्मीर का दौरा कर रहा था, जिसमें विपक्षी दलों के चार सांसद हुर्रियत के नेताओं से मिलने पहुंचे थे। इस प्रतिनिधिमंडल में जेडीयू के शरद यादव और वामपंथी नेता सीताराम येचुरी और डी राजा शामिल थे। उन्होंने हुर्रियत के सैयद अली शाह गिलानी के आवास पर मुलाकात की कोशिश की, लेकिन गिलानी ने दरवाजे बंद कर दिए और उनसे मिलने से मना कर दिया।
उस समय, Minister Rajnath Singh ने कहा था कि यह सांसद अपनी मर्जी से हुर्रियत नेताओं से मिलने गए थे। उन्होंने कहा कि सरकार ने न तो हां कहा था और न ही ना। यह बैठक सरकार की आधिकारिक योजना का हिस्सा नहीं थी, लेकिन सरकार ने इसे लोकतांत्रिक प्रयास के रूप में देखा।
शांति प्रयासों का निष्कर्ष
मंत्री राजनाथ सिंह द्वारा दी गई यह जानकारी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह कश्मीर में केंद्र सरकार के शांति प्रयासों को पहली बार सार्वजनिक रूप से स्वीकार करती है। 2016 की अशांति और हुर्रियत नेताओं के साथ बातचीत के प्रयास ने सरकार की शांति स्थापित करने की इच्छा को उजागर किया, भले ही वह विफल रही हो। हुर्रियत का कड़ा रुख और संवाद की अस्वीकृति ने कश्मीर में शांति प्रक्रिया को और जटिल बना दिया।
इस खुलासे से यह भी स्पष्ट होता है कि Minister Rajnath Singh और उनकी सरकार ने कश्मीर में शांति के लिए हरसंभव प्रयास किए थे, लेकिन हुर्रियत नेताओं की प्रतिक्रिया ने उन प्रयासों को विफल कर दिया। यह घटना कश्मीर में शांति वार्ता और समाधान की जटिलताओं को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण संदर्भ प्रदान करती है।
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